मेरी कविताएं

क्या लिखू ये सोच कर बैठा रहा मै 
शब्दों में ना बाँध  सका दोस्ती तुम्हारी 
दोस्त की कीमत लगा सकती नहीं है
इसकी कीमत के आगे दुनिया भी हारी

आप की तारीफ में करू क्या बयां मै 
आप की तो जिन्दगी खुद ही मिसाल है 
आप का दस्तूर है बस दर्द सहना 
सबको सुख देना ही कितना बेमिसाल है 

जब भी अपने जीवन में झाँका है मैंने 
मित्र के बस रूप में तुमको ही जाना 
ये तुमारी सादगी है सोच कर ये 
एक तुमको ही अलग सबसे है माना 

दोस्ती को शब्दों में ना बाँध पाऊं 
दोस्ती तेरी मुझे इतनी है प्यारी 
दोस्त  की इस सादगी पर क्या लिखू अब 
सादगी ही तेरी इस दुनिया से न्यारी 

जब भी मुझको आ किसी सुख दुःख ने घेरा 
ख्याल बस मुझको तभी आया है तेरा 
साथी तुझको क्यों चुना ना जानता हु 
बस तू दिल का साफ़ मन कहता ये मेरा 

हर तरफ मैंने ये पाया बस कपट है 
किन्तु नासमझी मेरी तुने मिटा दी 
साफ़ दरियादिल की ही आवाज़ है तू 
बात मुझको उस प्रभु ने ये बता दी 

चाहे कोई कितनी ही दौलत कमा ले 
किन्तु सच्चा मित्र मिल सकता नहीं है 
ये खुदा की रहमत है मुझपे शायद 
ना मिले सौ मित्र एक तू ही सही है 
'
प्यार को ये शब्द क्या लिख पायेगे रे 
प्यार तो उसकी बनाई बंदगी है 
दोस्त ऐसा हो कोई बस आप जैसा 
तब सफल दोस्तों की जिन्दगी है 

दिल में मेरे आपका सम्मान कितना 
मान लो सागर में पानी के जितना 
है नहीं थोड़ी सी  भी इसमें बड़ाई 
लिखता हु उतना की बस अनुभव है जितना 

जो पड़े सुन ले तो इतना जान ले बस 
दोस्त है मेरा ये दुनिया से निराला 
ना कपट ना छल ना लोभी है ये इंसा 
प्यार अपने दिल में सदगुरु का है पाला 

बस प्रभु लिखवाये तो लिखती कलम है 
मुझ पर अपने बापू का रहमोकरम है 
कोई तो है बात तुझमे दोस्त मेरे 
तुझको पाया मेरा भी पुण्य करम है 

बस यही विनती है मेरी उस प्रभु से 
दे अगर साथी तो तेरे जैसा दे बस 
जो चले सत की डगर बेखौफ होकर 
हमको भी अंगुली पकड़ के ले चले बस 

थक नहीं सकता कभी लिखते हुए मै 
वक़्त थोडा कम खुदा ने दिया है 
और तो दे दी ज़माने की ख़ुशी सब 
दूर तुझसे रहने का बस गम दिया है 

आपका प्रिये मित्र 
देवेंदर शर्मा

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