Friday, July 5, 2013

हमारा कर्तव्य

मनुष्य का परम कर्तव्य है कि वो आत्म - साक्षात्कार के लिए अपना पूरा जीवन प्रयास करे ,प्रेम और भक्ति की शरणागति के द्वारा अपने अन्तेर्यामी परमेश्वेर से बार बार मुलाकात कर्रे ,आत्मसाक्षात्कार के लिए उन्ही ग्रंथो का पाठ करे ,हल पल एक ही विचार से अपने जीवन को ओतप्रोत कर ले की मुझे इसी जन्म में इश्वेर को पाना है ,इश्वेर क्या है कहा है कैसा है कैसे पाए इसकी समझ और भूख बढाता जाए यही मनुष्य जन्म की सफलता है , पानी सौ डिग्री पर ही उबलता है ऐसे ही सौ प्रतिशत अपना पुरुषार्थ करे और उतना ही इश्वेर से प्रार्थना करे गुरु से प्रार्थना करे की तेरे कृपा के बिना मेरा पुरुषार्थ और साधना व्यर्थ है तू मेरे अवगुणों को नहीं अपनी उदारता और व्यापकता को देख प्रभु ,अपनी करूणा और दया से कृपा कर , मै तेरे शरणागत हु ऐसे करते करते तड़प और साधना बडाये ,सेवा और सत्संग बडाये ,मानो तो सरल है और असावधान रहे तो जन्मो से उस प्यारे से बिछड़े है ,न ये विचार है और ना तर्क ,न ये प्रेरणा है और न नसीहत ., आर्ति ,अर्थारती ,जिज्ञासु हृदय होने के बाद की ये प्रार्थना है ,भीख है जो साधक ,दाता सदगुरु से रो रो कर मांगता है ,प्राणों की भीख नहीं उस प्यारे परमात्मा के ज्ञान और अनुभव पाने की भीख ,और फिर वो क्षण  जीवन में  घटित हो ही जाता है जब समर्थ सदगुरु मीलो दूर अपने शीशे के हृदय के संताप को पहचान कर अहेतु की कृपा बरसाते है साधक को अपने भीतर महान अनुभव और शांति का अहेसास होता है जिसकी व्यापकता को शब्दों में नहीं बंधा जा सकता ,शास्त्र उसको समझा नहीं सकते ,वेद नेति नेति कह जाते है ,वो प्रसाद एक सच्चे सदगुरु के सच्चे प्रेमी शिष्य को ही प्राप्त होता जिसको इश्वेर के सिवा कुछ नहीं चाहिए होता है , भगवन करे की सब साधक उस मंगल घडी को अपने जीवन में ले आये जहा वो अद्भुत घटना घट जाती है जिसको शबदों  में बांध पाना आकाश को मुठी में बंद करने जैसा है ...............नेति नेति नेति .............हरी हरी ॐ 

आपका भाई 
देव पुष्करना 

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