Monday, July 15, 2013

वास्तविक जीत

आपकी जीत तब ही निश्चित है जब आप दुसरो की जीत के लिए सूत्रधार बनते है ,आपकी असली जीत वही  है जब दुसरे आपको सच्चे दिल से विजेता मानने को तैयार हो ,आपकी जीत आपके नेक इरादे और आत्मविश्वास का फल होती है ,मेहनत और सफलता की बुनियाद में वास्तविक तत्व आत्मविश्वास होता है उसी से निर्भयता आती है और निर्भयता ही जीत में मुख्य भूमिका निभाय ऐसा नहीं है उस निर्भयता में स्पष्ट लक्ष्य ,नेक इरादे ,अटूट संकल्प और अंत तक जुझारूपन का होंसला ही उसका स्वरूप होता है ,अगर आप जीतना चाहते है तो अपने को जीतिए तभी आप दुसरो को जीत पाएंगे 
आपका भाई 
देव पुष्करना 

Thursday, July 11, 2013


                                                                             


क्षमा वीरो का आभूषण है क्षमा देवताओं का गुण है क्षमा मांगना और क्षमा करना ये दैवी संपदा के गुण है क्षमा मांगने से आप का मन हल्का होता है क्षमा माँगना सरल ह्रदय की पहचान है क्षमा करना ये महानता की पहचान है क्षमा माँगना बड़ी भारी बहादुरी है और क्षमा करना ये वीरता की पराकाष्ठा है वो ही असली शक्तिशाली होने का प्रमाण दे सकता है जो भारी अपराध करने वाले के प्रति क्षमा करने का भाव रखता है ,क्षमा केवल गलती पर ही नहीं मांगनी चाहिए परमात्मा से भी रोज क्षमा मांगने से हृदय शुद्ध होता है और भाव पवित्र होते है ,क्षमा को गीता में भी महान देवी गुण बताया है ,क्षमा मांगने के कारन ही विश्वामित्र को ब्रह्म ऋषि की उपाधि प्राप्त हुई थी ,क्षमा करना तप है ,क्षमा मांगने की और क्षमा करने के अभ्यास से आप महान हो सकते है .क्षमा करने से आप सभी अन्य दुर्गुणों से बच जाते है क्षमा का गुण जहा होता है वहा द्वेष नहीं होता ,दुश्मन नहीं होते ,हानि नहीं होती ,भय नहीं होता ,क्षमा विष्णु भगवन का प्रिये गुण है ,संतो का प्रिये गुण है ,बड़े बुजुर्गो का प्रिये गुण है आप भी अपने भीतर इस सद्गुण को विकसित कीजिये और हर दिन एक नए परिवर्तन का अनुभव महसूस कीजिये 
आपका भाई .
देव पुष्करना

Monday, July 8, 2013

आंसुओ की कीमत

आंसुओ की कीमत 
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जिन्दगी में अश्को का, एहसान बड़ा होता है !
दिल में हर इक इंसा के ,अरमान बड़ा होता है !
अरमान टूट जाते है, तो अश्क काम आते है !
ये दोस्त नहीं है बेवफा, जो छोड़ के चले जाते है !

अश्को की क्या तारीफ करू, ये हम दर्दी की छाया है !
दुःख मिले कभी या मिले ख़ुशी, ये खुद ही दौड़े आते है !
इस बेवफाई के आलम में ,लोग वफ़ा से धोखा खाते है !
मै करता हु शुक्रिया इनका ,ये हर पल साथ निभाते है !

अश्को की दुनिया अजब है ,अंदाज़ इनका है निराला !
सुख दुःख में ये सम कर देते, भर देते नैनो से प्याला !
दुरी नहीं बनाते दिल से ,बीच अखियन में रहते है !
ये दोस्त नहीं है बेवफा, जो छोड़ के चले जाते है !

बनाया अश्को को बहुत कुछ, सोच कर भगवान ने !
कैसे रह पायेगा इंसा ,सुख दुःख भरे संसार में !
रूप अपना दे दिया, कुछ चंद बूंदों को तभी !
आ गए साकार हो कर ,अश्को के इजहार में !

दिल में प्यार भरा हो जिनके ,साथ उन्ही के रहते है !
ये दोस्त नहीं है बेवफा ,जो छोड़ के चले जाते है !

मेरी तो इन दोस्तों से ,दोस्ती इतनी घनी है !
आये न कुछ देर तो महसूस हो जाती कमी है !
मेरी इबादत की जीती जागती तस्वीर है !
बह रही है अश्क बनके दिल में जो भी पीड़ है !

कितनी भी हो मैल दिल में ,एक पल में धो जाते है !
ये दोस्त नहीं है बेवफा जो छोड़ के चले जाते है !!
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देव पुष्करना 

शब्दों की महिमा

शब्दों की महिमा 
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शब्दों की आत्मा स्वयम शब्द होते है !
जब गहराई से निकलते है तो लोग स्तब्ध होते है 
वेद भी कहते है शब्द ब्रह्म महान है 
ॐ ये है ब्रह्म ये है ,ये ही सारा जहाँ है 
शब्दों के जहान में 
कुछ कमी नहीं होती 
कोई सीमा नहीं होती 
आकाश नहीं होता 
कोई ज़मी नहीं होती 
बस ! शब्द सर्वत्र होते है क्योकि 
शब्दों की आत्मा स्वयम शब्द होते है 
जख्म हथियार के कितने भी गहरे हो जाए 
आखिर मिट ही जाते है 
पर शब्द तो हिरदे में चुभ जाते है ,
जिसके जख्म को भरना ,
मुमकिन हो नहीं सकता 
शब्दों में भगवान की सूक्ष्म शक्ति है 
वेदों और शास्त्रों में शब्दों से ही तो भक्ति है !
शब्दों की महिमा अपरम्पार है 
शब्दों की शक्ति से चल रहा संसार है 
शब्द अगर हो जाये लुप्त ,इस संसार से 
न आदमी है ,न मानवता है ,न ही कोई व्यापार है 
शब्दों से ही कल्पना साकार होती है 
शब्दों से ही व्रती एकाकार होती है 
शब्दों में इक शब्द ओंकार है जिस ,
शब्द की ब्रह्माण्ड में झंकार होती है 
शब्दों में तो साक्षात् भगवान बसे होते है 
शब्दों की आत्मा स्वयम शब्द होते है 
जब गहराई से निकलते है तो लोग स्तब्ध होते है 

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देव पुष्करना 
चरण धूलि 

सावधान हंसी लम्हों ...................

जीवन के लम्हों ,सावधान 

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ऐ मेरे जीवन के हसीं लम्हों ,
 अब मेरे पास आने की कोशिश नहीं करना
मै डूब रहा हु मेरे यार की मोहब्बत में 
,अब मुझे बचाने की कोशिश नहीं करना
तुम चाहो तो रह सकते हो मेरे संग संग सभी 
,पर मुझको बहकाने की कोशिश नहीं करना
देखो ये गुस्ताखी माफ़ न हो पायेगी ,
 अब मुझको रिझाने की कोशिश नहीं करना
मेरी नींद दुनिया के जैसी नहीं ,
 अब मुझको जगाने की हिम्मत नहीं करना
मिल गया हु उसमे जिसमे मिलना जरूरी था ,
 अब किसी और से मिलाने की जुर्रत नहीं करना
मै डूब रहा हु मेरे यार की मोहब्बत में ,
अब मुझे बचाने की कोशिश नहीं करना
मेरा यार ,मेरा प्यार ,मेरा दिलदार है मेरा सदगुरु,
 अब कोई प्यार लुटाने की कोशिश नहीं करना
उसके जैसा कोई नहीं इस लोक और परलोक में 
,उसके जैसा बताने की कोशिश नहीं करना
ऐ मेरे जीवन के हसीं लम्हों , 
अब मेरे पास आने की कोशिश नहीं करना,
मै डूब रहा हु मेरे यार की मोहब्बत में ,
अब मुझे बचाने की कोशिश नहीं करना

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देव पुष्करना 

आवाज

                                                                                  आवाज़ 
                                                                 ---------------------------------------------
          

रह रह के भीतर से कोई जगा रहा है , 

कुछ यु कह रहा है ,समय जा रहा है 
तुम क्या कर रहे हो ,कहा जा रहे हो ,
क्यों आखिर इस जग में ,उलझे जा रहे हो 
मत भूलो ! मौत कभी किसी का इंतज़ार नहीं करती 
खाली हो रही स्वांसो की गठरी ऐसे ही नहीं भरती
ज़मी गा रही है आसमा गा रहा है !
ये वक़्त जा रहा है ,ये वक़्त जा रहा है 
रह रह के भीतर से कोई जगा रहा है , 
कभी तो सोचो कुछ तो विचारो 
अनमोल अपनी स्वांसो को ,यूँ तो न बिसारो 
वक़्त बहुत कम है ,सुख थोड़े हजारो गम है 
कब तक उलझे रहोगे  , न जगोगे 
कोई जगाने आ रहा है , हर पल कहता जा रहा है ,
जनम मानुष का हर बार नहीं दूंगा ,
हर इक इक स्वांस का , कर्म का , हिसाब जरूर लूँगा ,
सावधान याद रखना , ना भुलाना ,
मेरी इस प्रेरणा को नज़र अंदाज़ मत करना ,
वरना बहुत पछताना होगा ,
विधि के विधान को तो अपनाना ही होगा 
सुन कर भीतर की आवाज़ ,जब मै डर गया ,
यु लगा जैसे की मै ,जीते हुए ही मर गया ,
हाय ! तेरे विधान  को न पहचाना  
क्यों आखिर संतो का शास्त्रों का ,गुरुओ का , कहना नहीं माना ,
फिर आवाज़ आई -----------
अभी मै तेरे साथ हु 
यु लगा कोई नजदीक आ रहा है 
 रह रह के भीतर से कोई जगा रहा है , 
हिम्मत से जो कर्म हो जाता है !
सत्य से वही धर्म हो जाता है !
असत्य से कुकर्म बन जाता है !
तितिक्षा से सुकर्म बन जाता है !
कर्म की गति बड़ी ही गहन है 
इसे समझो, पहचानो ,जानो 
इसकी अवेहलना करके कैसे जी पाओगे ,
इसे  नहीं जाना तो मुक्ति कैसे पाओगे 
मानुष जनम किसी को यु ही नहीं मिलता 
जब तक पुण्यो का खाता नहीं खुलता 
जान लो ! तुम मनुष्य हो, देव हो ,
ऐसा क्या है ? जो तुम नहीं कर सकते हो 
प्रभु का भी पेट भर सकते हो !
क्योंकि वो भूखा है प्रेम का , 
और तुम प्रेम कर सकते हो !
इतनी सुंदर प्रेरणा -----------तुम कौन हो ?
आवाज़ आई मै तुम्हारी चेतना हु !
मै किसी चेतना को नहीं जानता -------------बडबडाया 
तभी ,मुझे किसी ने झनझनाया 
जन्मो से मै तेरे साथ हु ,और तू कहता है ,मै अनाथ हु !
मै तेरा अंतर्यामी  हु ,अनंत ब्रह्मांडो का मै स्वामी हु !
मेरे हाथ जुड़ गए ,आंखे बंद हो गयी !
सदियों से जो सुखी थी, आज नम हो गयी, 
आवाज़ रुक गयी ,कंठ गदगद हो गया ,
अधुरा वाक्यात आज पूरा हो गया ,
बहते आंसू बोल उठे ,ये बदला कैसे चुकाऊंगा ,
तुम ही बताओ ,तुम्हारी शरण मै कैसे आऊंगा ?
मेरे भीतर से ये कौन गीत गा रहा है ?
रह रह के भीतर से कोई जगा रहा है , 
तू स्वयं ब्रह्म है ,ये जान ले 
आज स्वयं को पहचान ले
हृदय को शुद्ध करके ,
प्रेम की गागर भरके ,
सत्य की लाठी लेकर,
सीधा सीधा चला जा ,मत देख किसी को ,
गर मुझसे मिलना है ,तो बिखरना ही होगा ,
आंधी और तुफानो से, तुझे लड़ना ही होगा ,
मै बोल उठा ,मुझे कुछ नहीं समझ आ रहा है ,पर 
रह रह के भीतर से कोई जगा रहा है !
समझ से यु मुह न फेरना ,
कही ऐसे ही ,हो जाय देर ना 
विवेक जगा कर ,कुछ तो सुलझो ,
वक़्त बहुत कम है ,मत उलझो 
देर हो गयी तो ये तन मर जायेगा 
खाली हो गया दीपक तो कैसे भर पायेगा 
प्रकृति से जुड़ जाओ 
प्राकृतिक ही हो जाओ 
प्राकृतिक हुए बिना बात नहीं बनती ,
विषय भोगो की कभी भी ,राह नहीं थमती 
कोई रास्ता नज़र नहीं आता ,विधि का विधान आखिर क्यों नहीं भाता ?
कैसी विडम्बना है ,जलचर प्यासे है ,
सागर के जीव ,जो सागर में ही रहते है ,
वे तो निर्बोध है ,हम तो बोधवान है ,
सच  तो यही है, हम स्वयं ही भगवान है !
पर, सत्य से से गर डिग गए ,
मझधार में ही रुक गए ,
कैसे फिर पायेगे शान्ति ,
कैसे रुकेगी ? भीतर चल रही क्रांति ,
फिर भी विश्वास है ,इक आस है ,
परम पिता का मेरे सर पर ,सामर्थ्ये भरा हाथ है 
यही सोच कर फिर आनंद आ रहा है !  
रह रह के भीतर से कोई जगा रहा है !
उदास न हो ! निराश न हो !
हे पुत्र ! तुझे ,मुझ पर, अविश्वास न हो 
सत्य मै हु,मेरी अंगुली पकड़ना 
अनजानी राहो पर धीरे धीरे चलना ,
मै तुझे रास्ता दिखाऊंगा ,
गर भटक भी गया ,तो स्वयं आ जाऊँगा ,
गर हिम्मत से मुझे थामे ही रहा ,
और क्या कहू ,मै तेरा रास्ता बन जाऊंगा ,
ये कोई एहसान नहीं है ,हकीक़त है ,
ज्ञान हर इंसान की जरूरत है ,
भटके हुओ को रास्ता दिखाना , मेरा काम है !
मै ही वो अंतर्यामी हु,जिसका नाम भगवान है !!!
ओह ! मै कितना नासमझ था ,तुमे समझ ही न पाया 
प्रभु ही कह रहे है ,ये सोच भी न पाया ,
अब विश्वास जग गया है ,अज्ञान मिट गया है ,
बुझा हुआ दीपक , फिर से जल गया है 
 तुम सदा से हो मेरे विश्वास आ रहा है !
रह रह के भीतर से कोई जगा रहा है !!!

(प्रभु के चरणों की चरण धूलि )
देव पुष्करना 

आखिर ये धोखा ही तो है

''आखिर ये धोखा ही तो है ''!
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झूट को सच मान लेना 
किसी का हक मार लेना 
बेवफाई करके मुस्कुराना 
सच जानते हुए भी ठुकराना 
और कुछ नहीं ,ये धोखा ही तो है !
ये जानते हुए भी 
संसार झूठा है 
फिर भी लगता 
बड़ा ही अनूठा है 
ये मुस्कुराती कालिया 
ये चाँद ,ये सितारे 
सच नहीं है फिर भी ,
लगते है प्यारे,
रोती हुई आंखे l
विलाप करती बाहें 
पुकारे ,चिल्लाए ,और ये ही कहती जाये 
क्यों ? आखिर छोड़ जाते है लोग 
बीच सफ़र में मुह मोड़ जाते है लोग 
देख कर मृत देह को कह रहा है आदमी 
हाय !क्यों चला गया ,छोड़ करके ये ज़मी 
जानते है ! देह सबकी नाशवान है 
आश्चर्ये है कि जान कर भी ,बनते अनजान है 
दुसरे को देखकर ,ये जताना
कि हम तेरे दुःख में शामिल है 
ऐसा ढोंग पाखंड रचना ,
सत्ये के लिए तो बोझिल है ! 
ये सब देख कर ,सोच कर ,समझ कर 
मै इसी मुकाम पर पहुंचा ,
और कुछ नहीं ,ये सब धोखा ही तो है 
जिनको हम कभी ,
अपना मान बैठे थे 
झूठे अहेम में बस यु ही ऐठ बैठे थे 
सचाई का पता न था 
इसलिए खफा न  था 
चोट लगी तो कुछ समझ आया 
दस्तूर जिन्दगी का मुझको न भाया
दुखी होकर के मन को समझाया 
सच में आज बड़ा रोना आया 
रोते रोते जो आंसू बह निकले 
गिरते गिरते वो कुछ यु कह निकले 
हम तो पहले ही कहते थे 
यु न भरमाओ 
सच को जाने बिना 
यु ही न फंसे जाओ 
लेकिन ये बात जाने 
तुमने क्यों नहीं मानी
झूट को सच समझ लेने की
मन में थी ठानी 
आज वो वक़्त आ गया है 
जो है दर्द भरा 
हो रहा है जिन्दगी का 
इक एहसास कड़ा
लौट कर फिर से वही शब्द आज गूंज उठे 
और कुछ नहीं ये धोखा ही तो है 
हकीक़त में तो खुद बंद मुर्ख होता है 
कहता है धोखा खा के संसार बड़ा धोखा है 
पूछो जरा अरे ! ओ पागल बन्दे 
क्यों कर रहा था झूट के 
काले गोरख धंधे 
दो रोती की तो संसार में कुछ कमी न थी 
किन्तु तेरे भीतर ही 
चाह अग्नि थमी न थी 
अपने ही मन से तुने खुद ही धोखा खाया 
खुदा के सामने आकर फिर ये फ़रमाया 
इतना बड़ा संसार है तेरा ! 
फिर क्यों सब जगह ,धोखे का बसेरा 
अरे ! इतनी भी शर्म आखिर क्यों नहीं आई 
खुदा के सामने भी करने लगा बे-हयाई
काश ! पहले ही ये समझा होता 
संसार कभी किसी का
 सगा नहीं होता 
यहाँ जो नई नई
 रिश्तेदारी बनाते है 
शायद ये नहीं जानते 
ये सबसे कच्चे धागे है 
जरा से शब्दों में ही 
टूटे चले जाते है 
धोखा करते है और 
जी भर के मुस्कुराते है 
बेवफाई के आलम में 
मुझे दो शब्द याद आते है 
और कुछ नहीं ये धोखा ही तो है 
असल में धोखे में ही 
जी रहा हर इक इंसा 
कोई चाहता है धन 
और कोई चाहता है मकां
रे ! खुदा सुनता है तो सुन 
बना कोई ऐसा जहा 
जहा धोखे से भरी हो न कोई दांस्ता 
जहा हो प्रेम की मंजिल ,प्रेम का कारवां 
बिना प्रेम के तो सुना है ये सारा ही जहाँ 
प्रेम में शक्ति है ,प्रेम में ही भक्ति है 
प्रेम की छह में हर इक आँख तरसती है 
परन्तु प्रेम की रहा ये बड़ी अटपटी है 
प्रेम क्या है ? इसे समझना जरूरी है 
वर्ना धोखा खाने में न कोई दुरी है 
प्रेम इक त्याग है जो बस 
केवल देना जाने 
लेकिन इस जग में 
किसी को भी न अपना माने 
अपना मानना संसार को ये बड़ी भूल है 
प्रेम को न समझना धोखे का ये मूल है
गलती हुई है तो इससे ये 
सबक लेना सीखो 
गौर से देखो इसे समझो और करना सीखो 
गेहूं के साथ सदा 
घुन भी पिसा जाता है 
धोखा देने वाला ही 
जग में धोखा खाता है 
धोखे से उठा कर के ,
ले गया सीता को रावण
यही कारण है कि 
हर साल फूंका जाता है 
धोखा करना कभी 
अच्छी भी बात होती है 
अगर वृति धर्म के
 साथ साथ होती है 
विभीषण ने दिया रावण को,
 धोखा ही तो था 
सुग्रीव ने किया बालि से,
 धोखा ही तो था 
भ्रात पीड़ा सही पर,
 फिर भी न धर्म का साथ छोड़ा 
यही कारण था इतिहास ने,
 प्रभु से नाम जोड़ा 
धोखेबाजो की दुनिया में ,
कुछ अच्छे भी होते है 
परपीड़ा को ना सहने वाले सदा 
सच्चे ही होते है 
परपीड़क को पहचानना 
हर इक के बस की बात नहीं 
परपीड़क को लगता कभी भी 
किसी का श्राप नहीं 
ईश्वर के दरबार में वो सर पे उठाये जाते है 
जो दुसरो को पीड़ा को अपना बनाये जाते है 
फिर भी दुनिया अंधी दुनिया 
उन देवो को ठुकराती है 
जो विधि का विधान कभी 
समझ ही ना पाती है 
ऐसा सोचा तो यही बात दिल में आती है 
धोखे की दुनिया में धोखा ही सबका साथी है 
धोखा देने वालो का दस्तूर
 अपना अपना है 
असल में संसार होता 
ना कभी अपना है 
इसे मानो ,इसे जानो ,
इसी से प्यार करो 
इसी दस्तूर का
 हर इक पल विचार करो 
दुनिया को सच्चा मानना
 ये बड़ी भूल भी है 
फूलो में ना उलझना
 देखो,संग शूल भी है 
प्रभु  का सदा सम्मान
वो ही करता है 
जो धोखा खा के भी 
ओरो से प्यार करता है 
झूठे संसार में ये शब्द याद आते है 
बड़े ही प्रेम से प्रेमी ये गुनगुनाते है 
आखिर और कुछ नहीं ,ये संसार धोखा ही तो है !!! 
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प्रभु की चरनधुली
देव पुष्करना 

Sunday, July 7, 2013

सुना था मैं हु आत्मा ,मैं आत्मा ही रह गया


                                चले थे रब के रास्ते कदम ये डगमगा गए 
थे प्रेम भरे रास्ते ,ये कौन से है आ गए
ना था सुकून तब हमे ,ना अब सुकून मिल रहा
इन गलियारों में मगर फर्क एक दिख रहा
प्रतीक्षा ,परीक्षा से ऊपर उठने लगा
समीक्षा के रास्ते पर हु मैं चल रहा
कौन जाने कौन सी ऊँचाइया है मिल रही
दुनिया को हर एक पल गिरता हुआ मैं लग रहा
दर्द है अटपटा ,खिंच रहा रुआ रुआ
प्रेम से भरी हुई सुन रहा हु दासता
है नज़र मगर मेरी ,आज भी वही लगी
जो मिली थी इस कदर ,इक अब तलक नहीं मिली
वो जाम सद्ग्रुरू का था ,वो था किसी फ़क़ीर का
हुआ हरण था मेरी अपनी आत्मा के चीर का
मैं लुट गया पूरी तरह ,बचा ना कुछ जो रह गया
सुना था मैं हु आत्मा ,मैं आत्मा ही रह गया
बड़ी नज़र थी पारखी उस माई के लाल की
मुझको भी निगल गयी छवि उसी के प्यार की
हु पागल मैं अब तलक ,ना आया कभी होश में
देखने गया था उसको मैं बड़े ही जोश में
रूहानगी की थी चड़ी ,मुझको यु दीवानगी
गुम्म हो गयी मेरी जिन्दगी की बेबसी
मैंने देखे लोग ऐसे ऐसे अपने पास में
पल पल बदल रहे वो सुख दुःख के साथ में 
मुर्दों सी है जिंदगी ,ढोंग से भरी हुई
झूटी आस में बंधी हर किसी की जिन्दगी
मुझको तो मिली थी  एक ऐसी मुक्त बंदगी
टूटी झूटी मान्यताये,दिल की हर कलि खिली
ना जाने मैं क्या हो गया ना जाने कहा खो गया
अहम है निगलता सबको ,मैं अहम को ही खा गया
अब हु जवा जवा ,हर जगह मैं विधमान
कौन सा है स्थान जहा नहीं कोई मेरा निशाँ
मैं हु हवा ,मैं हु फिजा ,मैं ही मैं हु हर जगह
ना कोई ऐसी दास्ताँ ना जिसमे हो मेरा बयां
देखता हु जब कभी मैं स्वयं को गहराई से
ऐसा व्यापक रूप सुंदर कोई यकी करे कहाँ
शुरू शुरू की बात है   नयी सी  मुलाक़ात है
मैं जानने लगा हु जो सदा से मेरे साथ है
क्या करू क्या ना करू बोल दू या चुप रहू
लबो के अग्र भाग पर छिपा छिपा सा राज है
(देव पुष्करना )
(बापू की चरणधूलि )

Friday, July 5, 2013

ये कैसी आजादी ?

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कई दशको से  है आज़ाद हम 
किया है बहुत ज्यादा विस्तार 
देश की एकता और अखंडता में 
डाली किसने ये दरार 
भारत की जिस पावन भूमि का 
रखा ऋषियों ने आधार 
उस पावन भूमि का देखो 
अंश तक कर डाला बेकार 
यहाँ हज़ारो लुटते है घर 
घर घर में है चीख पुकार
कही है मातम कही है खुशिया 
कैसा अनोखा है संसार 
कोई करता बुरे काम है 
उसका तो होता बेडा पार 
करो भलाई अगर किसी की 
तो मिलता जूतों का हार 
नारी के जीवन में देखो 
नारी पर होता अत्याचार 
क्यों जलाई जाती है नारी 
लालच से होते ये पाप 
जननी बहिन बेटी और पत्नी 
ये तो है नारी के ताज 
कोई तो कहता भारतमाता 
और कोई कहता है अभिशाप
भारत के सिर्फ नोजवान ही 
बंद करेंगे अत्याचार 
उखाड़ फेंके अब आतंकवाद को 
हाथ में ले ले अब तलवार 
देश का गौरव ,शहीदों की रूहे ,भारत माता की करुण पुकार 
सब धर्मो का यही सन्देश है बंद करो ये अत्याचार 

देव पुष्करना 

हमारा कर्तव्य

मनुष्य का परम कर्तव्य है कि वो आत्म - साक्षात्कार के लिए अपना पूरा जीवन प्रयास करे ,प्रेम और भक्ति की शरणागति के द्वारा अपने अन्तेर्यामी परमेश्वेर से बार बार मुलाकात कर्रे ,आत्मसाक्षात्कार के लिए उन्ही ग्रंथो का पाठ करे ,हल पल एक ही विचार से अपने जीवन को ओतप्रोत कर ले की मुझे इसी जन्म में इश्वेर को पाना है ,इश्वेर क्या है कहा है कैसा है कैसे पाए इसकी समझ और भूख बढाता जाए यही मनुष्य जन्म की सफलता है , पानी सौ डिग्री पर ही उबलता है ऐसे ही सौ प्रतिशत अपना पुरुषार्थ करे और उतना ही इश्वेर से प्रार्थना करे गुरु से प्रार्थना करे की तेरे कृपा के बिना मेरा पुरुषार्थ और साधना व्यर्थ है तू मेरे अवगुणों को नहीं अपनी उदारता और व्यापकता को देख प्रभु ,अपनी करूणा और दया से कृपा कर , मै तेरे शरणागत हु ऐसे करते करते तड़प और साधना बडाये ,सेवा और सत्संग बडाये ,मानो तो सरल है और असावधान रहे तो जन्मो से उस प्यारे से बिछड़े है ,न ये विचार है और ना तर्क ,न ये प्रेरणा है और न नसीहत ., आर्ति ,अर्थारती ,जिज्ञासु हृदय होने के बाद की ये प्रार्थना है ,भीख है जो साधक ,दाता सदगुरु से रो रो कर मांगता है ,प्राणों की भीख नहीं उस प्यारे परमात्मा के ज्ञान और अनुभव पाने की भीख ,और फिर वो क्षण  जीवन में  घटित हो ही जाता है जब समर्थ सदगुरु मीलो दूर अपने शीशे के हृदय के संताप को पहचान कर अहेतु की कृपा बरसाते है साधक को अपने भीतर महान अनुभव और शांति का अहेसास होता है जिसकी व्यापकता को शब्दों में नहीं बंधा जा सकता ,शास्त्र उसको समझा नहीं सकते ,वेद नेति नेति कह जाते है ,वो प्रसाद एक सच्चे सदगुरु के सच्चे प्रेमी शिष्य को ही प्राप्त होता जिसको इश्वेर के सिवा कुछ नहीं चाहिए होता है , भगवन करे की सब साधक उस मंगल घडी को अपने जीवन में ले आये जहा वो अद्भुत घटना घट जाती है जिसको शबदों  में बांध पाना आकाश को मुठी में बंद करने जैसा है ...............नेति नेति नेति .............हरी हरी ॐ 

आपका भाई 
देव पुष्करना 

Thursday, July 4, 2013

ईश्वर कहा पाओगे ?

एक बार अयोध्या, दो बार द्वारिका, तीन बार जाके त्रिवेणी में नहाओगे 
चार बार चित्रकूट, नौ बार नासिक, बार बार जाके बद्रीनाथ घूम आओगे
कोटि बार कशी, केदारनाथ, रामेश्वर, गया, जगन्नाथ, चाहे जहाँ जाओगे
होते है दर्शन, परब्रह्म परमात्मा के ,आत्मा में डुबो तो कही नहीं जाओगे 
आत्मा का सार परमात्मा आधार है ,आत्मा से जुड़ोगे तो भव तर जाओगे 
घूम लो तीरथ ,दान,पुन,स्नान करो ,वासना न गयी तो आराम नहीं पाओगे 
राम के आराम में डूबना जो चाहो ,भव के किनारे बैठ पहुँच नहीं पाओगे 
सेवा को धर्म मानो ज्ञान को तप जानो ,आत्मा में स्नान करो तब पहुँच पाओगे 
ईश्वर के बिना कोई स्थान खाली है ही नहीं ,पुरे ब्रह्माण्ड में सिर्फ उसे पाओगे 
शास्त्र और चार वेद चार चार बार सुनो ,गुरु बिन प्यारे मुक्ति नहीं पाओगे 
खोजना जो चाहो तो खोज लो अभी अभी प्रेम से पुकारो तो अभी अभी पाओगे 
दूर नहीं दुर्लभ नहीं आँखों से ओझल नहीं ,सब में देखो तो सबमे ही पाओगे 
कौन कहता है साकार  होके आते नहीं ,सौ बार मिले तो पहचान नहीं पाओगे 
आत्मा के ध्यान में गोता लगा कर के ,स्वयं को खोजो बार बार तब पाओगे
आपका भाई 
देव पुष्करना 

आई लव यु ---- माँ

बुद्धि पर कैसा अज्ञान छाया है ,
जिसकी गोद में खोली पलके उसको ही भुलाया है ,
प्यार की परिभाषा देने में कितना वक़्त लगाया है ,
कैसी विडंबना है कि किसी को माँ शब्द याद नहीं आया है ,
प्यार का सबने अपना अनुमान लगाया है ,
पर प्यार को कभी कोई समझ नहीं पाया है ,
अरे भूतकाल का वो पहला दिन याद करो ,
किसने दिया जनम और किसने दूध पिलाया है ,
उसको भूल गए क्यों हाय ,
ये कैसा ईश्वर याद आया है ,
दोनों को अलग मानते हो ,
भारत के इतिहास में ये कैसा काल आया है ,
माँ तो प्रेम की पराकाष्टा है ,
जिसको ईश्वर ने बनाया है ,
माँ का प्यार पाने की खातिर ,
कई बार खुदा अवतार बन कर आया है ,
दुःख इस बात का नहीं मेरे सीने में ,
कि प्यार की परिभाषा अलग अलग दी सबने ,
दुःख इस बात का है कि माँ की विस्मृति से ,
दुःख के हृदय में दुःख भर आया है ,
 माँ तो माँ है माँ से बड़ा कोई नहीं ,
ये माँ का प्यार ही तो है जो कलम में भर आया है ,
माफ़ कर देना मुझको अगर कुछ गलत कहा ,
है कोई माई का लाल जिसने माँ के प्रेम से अधिक ,
कही और प्रेम पाया है ,
फिर कभी मत पूछना दोबारा कभी ,
एक शब्द में प्रेम क्या है ,
इसके उत्तर में सिर्फ माँ ने ही सिघासन जमाया है 
.अनंत अनंत ब्रह्मांडो में व्याप रहा जो प्रेम है ,
वो प्रेम का अनुभव सिर्फ माँ में समाया है .
 आई लव यू माँ
(देव पुष्करना )

छोटी से उम्र में बुडा हो गया हूँ मैं !



छोटी से उम्र में बुडा हो गया हु मैं 
कैसे कहू पूरा हो गया हु मैं 

ये जिन्दगी की हसरते लगती है फिजूल मुझको 
सच कहू तो जिन्दगी के लिए मुर्दा हो गया हु मैं 

है राज इसमें गहरा क्या जाने कौन समझेगा 
दरिया के किनारे तोड़ कर समुंदर हो गया हु मैं 

इश्क इतना बेइंतहा मुझमे भर गया 
कभी नानक कभी तुलसी ,कबीरा हो गया हु मैं 

इतिहास अपने को दोहराता है जब वक़्त बदलता है 
''मैं '' को भुला तो मीरा हो गया हु मैं 

कितना दूर था खुद से दुनियावी शोर में ''देव''
अब क्या कहू चुप रहने से क्या हो गया हु मैं

देव पुष्करना
२७-०६-२०१३