एक बार अयोध्या, दो बार द्वारिका, तीन बार जाके त्रिवेणी में नहाओगे
चार बार चित्रकूट, नौ बार नासिक, बार बार जाके बद्रीनाथ घूम आओगे
कोटि बार कशी, केदारनाथ, रामेश्वर, गया, जगन्नाथ, चाहे जहाँ जाओगे
चार बार चित्रकूट, नौ बार नासिक, बार बार जाके बद्रीनाथ घूम आओगे
कोटि बार कशी, केदारनाथ, रामेश्वर, गया, जगन्नाथ, चाहे जहाँ जाओगे
होते है दर्शन, परब्रह्म परमात्मा के ,आत्मा में डुबो तो कही नहीं जाओगे
आत्मा का सार परमात्मा आधार है ,आत्मा से जुड़ोगे तो भव तर जाओगे
घूम लो तीरथ ,दान,पुन,स्नान करो ,वासना न गयी तो आराम नहीं पाओगे
राम के आराम में डूबना जो चाहो ,भव के किनारे बैठ पहुँच नहीं पाओगे
सेवा को धर्म मानो ज्ञान को तप जानो ,आत्मा में स्नान करो तब पहुँच पाओगे
ईश्वर के बिना कोई स्थान खाली है ही नहीं ,पुरे ब्रह्माण्ड में सिर्फ उसे पाओगे
शास्त्र और चार वेद चार चार बार सुनो ,गुरु बिन प्यारे मुक्ति नहीं पाओगे
खोजना जो चाहो तो खोज लो अभी अभी प्रेम से पुकारो तो अभी अभी पाओगे
दूर नहीं दुर्लभ नहीं आँखों से ओझल नहीं ,सब में देखो तो सबमे ही पाओगे
कौन कहता है साकार होके आते नहीं ,सौ बार मिले तो पहचान नहीं पाओगे
आत्मा के ध्यान में गोता लगा कर के ,स्वयं को खोजो बार बार तब पाओगे
आपका भाई
देव पुष्करना
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