Thursday, July 4, 2013

छोटी से उम्र में बुडा हो गया हूँ मैं !



छोटी से उम्र में बुडा हो गया हु मैं 
कैसे कहू पूरा हो गया हु मैं 

ये जिन्दगी की हसरते लगती है फिजूल मुझको 
सच कहू तो जिन्दगी के लिए मुर्दा हो गया हु मैं 

है राज इसमें गहरा क्या जाने कौन समझेगा 
दरिया के किनारे तोड़ कर समुंदर हो गया हु मैं 

इश्क इतना बेइंतहा मुझमे भर गया 
कभी नानक कभी तुलसी ,कबीरा हो गया हु मैं 

इतिहास अपने को दोहराता है जब वक़्त बदलता है 
''मैं '' को भुला तो मीरा हो गया हु मैं 

कितना दूर था खुद से दुनियावी शोर में ''देव''
अब क्या कहू चुप रहने से क्या हो गया हु मैं

देव पुष्करना
२७-०६-२०१३

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