Monday, July 8, 2013

आखिर ये धोखा ही तो है

''आखिर ये धोखा ही तो है ''!
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झूट को सच मान लेना 
किसी का हक मार लेना 
बेवफाई करके मुस्कुराना 
सच जानते हुए भी ठुकराना 
और कुछ नहीं ,ये धोखा ही तो है !
ये जानते हुए भी 
संसार झूठा है 
फिर भी लगता 
बड़ा ही अनूठा है 
ये मुस्कुराती कालिया 
ये चाँद ,ये सितारे 
सच नहीं है फिर भी ,
लगते है प्यारे,
रोती हुई आंखे l
विलाप करती बाहें 
पुकारे ,चिल्लाए ,और ये ही कहती जाये 
क्यों ? आखिर छोड़ जाते है लोग 
बीच सफ़र में मुह मोड़ जाते है लोग 
देख कर मृत देह को कह रहा है आदमी 
हाय !क्यों चला गया ,छोड़ करके ये ज़मी 
जानते है ! देह सबकी नाशवान है 
आश्चर्ये है कि जान कर भी ,बनते अनजान है 
दुसरे को देखकर ,ये जताना
कि हम तेरे दुःख में शामिल है 
ऐसा ढोंग पाखंड रचना ,
सत्ये के लिए तो बोझिल है ! 
ये सब देख कर ,सोच कर ,समझ कर 
मै इसी मुकाम पर पहुंचा ,
और कुछ नहीं ,ये सब धोखा ही तो है 
जिनको हम कभी ,
अपना मान बैठे थे 
झूठे अहेम में बस यु ही ऐठ बैठे थे 
सचाई का पता न था 
इसलिए खफा न  था 
चोट लगी तो कुछ समझ आया 
दस्तूर जिन्दगी का मुझको न भाया
दुखी होकर के मन को समझाया 
सच में आज बड़ा रोना आया 
रोते रोते जो आंसू बह निकले 
गिरते गिरते वो कुछ यु कह निकले 
हम तो पहले ही कहते थे 
यु न भरमाओ 
सच को जाने बिना 
यु ही न फंसे जाओ 
लेकिन ये बात जाने 
तुमने क्यों नहीं मानी
झूट को सच समझ लेने की
मन में थी ठानी 
आज वो वक़्त आ गया है 
जो है दर्द भरा 
हो रहा है जिन्दगी का 
इक एहसास कड़ा
लौट कर फिर से वही शब्द आज गूंज उठे 
और कुछ नहीं ये धोखा ही तो है 
हकीक़त में तो खुद बंद मुर्ख होता है 
कहता है धोखा खा के संसार बड़ा धोखा है 
पूछो जरा अरे ! ओ पागल बन्दे 
क्यों कर रहा था झूट के 
काले गोरख धंधे 
दो रोती की तो संसार में कुछ कमी न थी 
किन्तु तेरे भीतर ही 
चाह अग्नि थमी न थी 
अपने ही मन से तुने खुद ही धोखा खाया 
खुदा के सामने आकर फिर ये फ़रमाया 
इतना बड़ा संसार है तेरा ! 
फिर क्यों सब जगह ,धोखे का बसेरा 
अरे ! इतनी भी शर्म आखिर क्यों नहीं आई 
खुदा के सामने भी करने लगा बे-हयाई
काश ! पहले ही ये समझा होता 
संसार कभी किसी का
 सगा नहीं होता 
यहाँ जो नई नई
 रिश्तेदारी बनाते है 
शायद ये नहीं जानते 
ये सबसे कच्चे धागे है 
जरा से शब्दों में ही 
टूटे चले जाते है 
धोखा करते है और 
जी भर के मुस्कुराते है 
बेवफाई के आलम में 
मुझे दो शब्द याद आते है 
और कुछ नहीं ये धोखा ही तो है 
असल में धोखे में ही 
जी रहा हर इक इंसा 
कोई चाहता है धन 
और कोई चाहता है मकां
रे ! खुदा सुनता है तो सुन 
बना कोई ऐसा जहा 
जहा धोखे से भरी हो न कोई दांस्ता 
जहा हो प्रेम की मंजिल ,प्रेम का कारवां 
बिना प्रेम के तो सुना है ये सारा ही जहाँ 
प्रेम में शक्ति है ,प्रेम में ही भक्ति है 
प्रेम की छह में हर इक आँख तरसती है 
परन्तु प्रेम की रहा ये बड़ी अटपटी है 
प्रेम क्या है ? इसे समझना जरूरी है 
वर्ना धोखा खाने में न कोई दुरी है 
प्रेम इक त्याग है जो बस 
केवल देना जाने 
लेकिन इस जग में 
किसी को भी न अपना माने 
अपना मानना संसार को ये बड़ी भूल है 
प्रेम को न समझना धोखे का ये मूल है
गलती हुई है तो इससे ये 
सबक लेना सीखो 
गौर से देखो इसे समझो और करना सीखो 
गेहूं के साथ सदा 
घुन भी पिसा जाता है 
धोखा देने वाला ही 
जग में धोखा खाता है 
धोखे से उठा कर के ,
ले गया सीता को रावण
यही कारण है कि 
हर साल फूंका जाता है 
धोखा करना कभी 
अच्छी भी बात होती है 
अगर वृति धर्म के
 साथ साथ होती है 
विभीषण ने दिया रावण को,
 धोखा ही तो था 
सुग्रीव ने किया बालि से,
 धोखा ही तो था 
भ्रात पीड़ा सही पर,
 फिर भी न धर्म का साथ छोड़ा 
यही कारण था इतिहास ने,
 प्रभु से नाम जोड़ा 
धोखेबाजो की दुनिया में ,
कुछ अच्छे भी होते है 
परपीड़ा को ना सहने वाले सदा 
सच्चे ही होते है 
परपीड़क को पहचानना 
हर इक के बस की बात नहीं 
परपीड़क को लगता कभी भी 
किसी का श्राप नहीं 
ईश्वर के दरबार में वो सर पे उठाये जाते है 
जो दुसरो को पीड़ा को अपना बनाये जाते है 
फिर भी दुनिया अंधी दुनिया 
उन देवो को ठुकराती है 
जो विधि का विधान कभी 
समझ ही ना पाती है 
ऐसा सोचा तो यही बात दिल में आती है 
धोखे की दुनिया में धोखा ही सबका साथी है 
धोखा देने वालो का दस्तूर
 अपना अपना है 
असल में संसार होता 
ना कभी अपना है 
इसे मानो ,इसे जानो ,
इसी से प्यार करो 
इसी दस्तूर का
 हर इक पल विचार करो 
दुनिया को सच्चा मानना
 ये बड़ी भूल भी है 
फूलो में ना उलझना
 देखो,संग शूल भी है 
प्रभु  का सदा सम्मान
वो ही करता है 
जो धोखा खा के भी 
ओरो से प्यार करता है 
झूठे संसार में ये शब्द याद आते है 
बड़े ही प्रेम से प्रेमी ये गुनगुनाते है 
आखिर और कुछ नहीं ,ये संसार धोखा ही तो है !!! 
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प्रभु की चरनधुली
देव पुष्करना 

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