Sunday, July 7, 2013

सुना था मैं हु आत्मा ,मैं आत्मा ही रह गया


                                चले थे रब के रास्ते कदम ये डगमगा गए 
थे प्रेम भरे रास्ते ,ये कौन से है आ गए
ना था सुकून तब हमे ,ना अब सुकून मिल रहा
इन गलियारों में मगर फर्क एक दिख रहा
प्रतीक्षा ,परीक्षा से ऊपर उठने लगा
समीक्षा के रास्ते पर हु मैं चल रहा
कौन जाने कौन सी ऊँचाइया है मिल रही
दुनिया को हर एक पल गिरता हुआ मैं लग रहा
दर्द है अटपटा ,खिंच रहा रुआ रुआ
प्रेम से भरी हुई सुन रहा हु दासता
है नज़र मगर मेरी ,आज भी वही लगी
जो मिली थी इस कदर ,इक अब तलक नहीं मिली
वो जाम सद्ग्रुरू का था ,वो था किसी फ़क़ीर का
हुआ हरण था मेरी अपनी आत्मा के चीर का
मैं लुट गया पूरी तरह ,बचा ना कुछ जो रह गया
सुना था मैं हु आत्मा ,मैं आत्मा ही रह गया
बड़ी नज़र थी पारखी उस माई के लाल की
मुझको भी निगल गयी छवि उसी के प्यार की
हु पागल मैं अब तलक ,ना आया कभी होश में
देखने गया था उसको मैं बड़े ही जोश में
रूहानगी की थी चड़ी ,मुझको यु दीवानगी
गुम्म हो गयी मेरी जिन्दगी की बेबसी
मैंने देखे लोग ऐसे ऐसे अपने पास में
पल पल बदल रहे वो सुख दुःख के साथ में 
मुर्दों सी है जिंदगी ,ढोंग से भरी हुई
झूटी आस में बंधी हर किसी की जिन्दगी
मुझको तो मिली थी  एक ऐसी मुक्त बंदगी
टूटी झूटी मान्यताये,दिल की हर कलि खिली
ना जाने मैं क्या हो गया ना जाने कहा खो गया
अहम है निगलता सबको ,मैं अहम को ही खा गया
अब हु जवा जवा ,हर जगह मैं विधमान
कौन सा है स्थान जहा नहीं कोई मेरा निशाँ
मैं हु हवा ,मैं हु फिजा ,मैं ही मैं हु हर जगह
ना कोई ऐसी दास्ताँ ना जिसमे हो मेरा बयां
देखता हु जब कभी मैं स्वयं को गहराई से
ऐसा व्यापक रूप सुंदर कोई यकी करे कहाँ
शुरू शुरू की बात है   नयी सी  मुलाक़ात है
मैं जानने लगा हु जो सदा से मेरे साथ है
क्या करू क्या ना करू बोल दू या चुप रहू
लबो के अग्र भाग पर छिपा छिपा सा राज है
(देव पुष्करना )
(बापू की चरणधूलि )

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